आसु थमते ही नहीं थे जब ज़िक्र माँ का आया और सामने बेठे थे जनाब मुनव्वर राना /
और काव्य-गोष्ट्ठियों में कहकहे और ठहाके तो अक्सर सुनाई देते है पर आखों में नमी, मुनव्वर राना जैसे हुनरमंद ही ला पाते है। दर्द के एहसास की तपिश जब दिल को तपाती है तभी आँसू टपकता है। उनकी लाजवाब शायरी,उस शायरी को पेश करने का दिलकश अन्दाज़, उस अंदाज़ को जज़बात देती बुलन्द आवाज़ सब मिलकर इस कदर मुतासिर करते है सीधे दिल पर असर करते है। मैं तहे दिल से शुकरगुज़र हु अवदेश जी का जिन्होंने इस मेफ्फिल मैं बुलाया खास्तोर पर /ये मेरी ज़िन्दगी की सबसे खूबसूरत महफिल थी और रहेगी
ये कुछ शेर जो आज उन्होने पड़े जो दिल मैं उतर गए जनजोड़ कर रख दिया दिया/आज अपनी अम्मा को बोहत मिस किया........................
लबों पर उसके कभी बददुआ नहीं होती,
बस एक माँ है जो कभी खफ़ा नहीं होती।
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।
”किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई-मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से में मां आई.” मुनव्वर साहब वाक़ई ”बड़े” शायर है !!
मैंने रोते हुए पोछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुप्पट्टा अपना।
अभी ज़िंदा है माँ मेरी, मुझे कुछ भी नहीं होगा,
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है।
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है।
ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया,
माँ ने आँखें खोल दी घर में उजाला हो गया।
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊं
मां से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ।
मुनव्वर‘ माँ के आगे यूँ कभी खुलकर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में गज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है।
सुख देती हुई माओं को गिनती नहीं आती
पीपल की घनी छायों को गिनती नहीं आती।
ज़रा सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाए
दीए से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाती है।”
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।
अभी ज़िंदा है माँ मेरी, मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है
ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दी घर में उजाला हो गया
लबों पर उसके कभी बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे खफ़ा नहीं होती
‘मुनव्वर‘ माँ के आगे यूँ कभी खुलकर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं
i am waiting for his book to be given to me from his own hands as promised by avdesh Ji.
''इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
ReplyDeleteमाँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।''
मुनव्वर राणा के ज़ज्बात , सारे एक साथ, माँ के बारे में, जो देवी है साक्षात्, आपने पुनः प्रस्तुत कर मुझ जैसे पिपासुओं का बड़ा भला किया है.
मैंने अपनी माँ को साक्षात् ईश्वर की प्रतिकृति स्वरूप देखा है . उसके अवदान पर मैंने जो लिखा था, उसका एक पद दोहराना समीचीन होगा.
माँ मैं तुझको क्या उपमा दूं,
जग की सब उपमाएं छोटी,
स्वर्ग की बातें होती झूटी
जग का निर्माता, विश्व विधाता ,
ईश्वर भी तुझसे कम है.
फिर में तुझको क्या उपमा दूं.
श्रेष्ठ ब्लोग के लिए साधुवाद
- rdsaxena@gmail.com